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छोटे छोटे गाव चुपकेसे, शहर बन जाते है

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  छोटे छोटे गाव चुपकेसे, शहर बन जाते है भोले भाले लोग ही जैसे, कहर बन जाते है  छोटे छोटे गाव चुपकेसे, शहर बन जाते है ना पिछला भुलाया गया, ना अगला दिखाई देता है  पल गुजर जाता है पर, इन्सान ठहर जाते है  थंडी हवीये बहती थी तो मुफ्त हुआ करती थी, अब खरीदनी है तो, एअर कंडिशन लग जाते है  दिल से सोचनेवाले को सब पागल हि कहते  है  प्यार छोडकर पागल, व्यवहार में लग जाते है  शहर का होना ठीक है, तरक्की कि निशानी है, पर घांसलें खो जाये तो परिंदे सहम जाते है 

ये इश्क, मुझे इश्क है तुमसे..

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  ऐ  इश्क, मुझे इश्क है तुमसे.. पता नही कैसे, आन मिले  हो हमसे, ऐ  इश्क, मुझे इश्क है तुमसे..। तुम कुछ नैन नक्ष से सजे, इन्सानो जैसे, बनकर जो आये हो, ऐसे तो नही हो, पर फिर तुम कब  किसको समझ आये हो? और कयामत ये कि, अब मुझे भी तुमने कुछ तुम जैसा हि बना दिया है  मुझे भी नैन नक्ष,  कुछ हाथ पैर देकर, इन्सानो सा सजा दिया है हा.. इस शरीर के साजो सामान में, एक दिल धडकता है, थोडा अजीब है,  पर यही एक काम कि चीज है । जो हर धडकन पे तुम्हारा नाम लेता है, पर सरेआम तुम्हारा होने का पैगाम देता है  इस दिल को सम्भाले हुए मै तुम्हे देखती हू, मै तुम्हे देखती हू, और देखते हि रह जाती हू । अब इस दिल को सांभाले मए तुम्हे देखने, में इतनी मश्गूल हो जाती हू । एक तुम्हारा होने का काम छोडकर, कोई काम नही कर पाती हू । तुम सबकुछ करके भी, कुछ भी नही करते हो । अब तो मेरे अंदर, एक दरिया बनके बेहते हो । पर इस में एक  बात बडी खास है, तुम्हारा मेरा हो जाने का जो अहसास है अब शब्दो के बगैर भी तुम बहोत कुछ बोलते हो , अपनी राज-ए-हाकिकी होले होले खोलते हो, साजन तुम सोणे हो, सजे र...
मैंने, एक पलड़े में, जिंदगी के सब दुःख रखे, एक में रखी जिंदगी, रिश्तों का दुःख  किश्तों का दुःख  अपना दुःख  पराया दुःख   दबा हुआ दुःख  उभरा हुआ दुःख  भारी से भारी दुःख  पर ये पलड़ा  हल्का हो रहा है  शायद मेरा दुःख कोई  और भी ढो रहा है  हे, मुर्शद  साथ रहकर,  तुमने मेरा पलड़ा  खाली कर दिया है  मेरी जगह रहकर  सब सह लिया है  और इस खाली पलड़े  ने यही है सिखाया  ऐ मेरे खुदाया !! मै तुझसे बिछड़ जाऊं  इस से बड़ा और कोई दुःख नही ...

तुम रूह वाले हो , रूह में रहना सिखो.

 जिस्मो से बाहर निकलो  आज़ाद होना सिखो  तुम रूह वाले हो , रूह में रहना सिखो. आगाज़ जो तुम्हारा  अंजाम भी वही है मिट्टी से मिट्टी का मिट्टी होना सिखो  ख़ौफ ए ज़िन्दगी ने, बडे धोके दिए अबतक  अब तो मौत से भी, इश्क़ निभाना सिखो  कुल कायनात में तेरा, वजूद ही क्या हैं. खुदी मिटाकर अपनी , बेइन्तहा बनना सिखो. - 23rd April 2021

तुझे देणे आहे

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  आजवर मला जे जे मिळाले, ते ते तुझे देणे आहे.  तूच देऊ शकते जगती, म्हणुन तुझ्याकडे मागणे आहे.  किती अविरत किती निरंतर,  तुझा माझ्या अवतीभोवती वावर.  माझ्या प्रत्येक उच्छवासासोबत, तू पुढचा श्वास करतेस हजर.  श्वास दिलेस तर श्वासांची  करता येऊ देत कदर  अवघ्या मानवांसाठी मागते, निरंकार बघण्याची नजर  तक्रारीचे सूर सोडून आत्ता  आभाराचे गाणे दे  जगातल्या प्रत्येक चोचीला  पोटभर तू दाणे दे  वादळामध्येही झाडावरची घरटी  कुठे खाली पडतात? आम्ही पडण्याआधी तुझे  हात आम्हा अलगद झेलतात वादळांमध्येही तुझा विश्वास दे  स्थिरता जगण्यास दे  सहज असतील, सहज बनवतील  अशा संतांचा सहवास दे  दुर्गुणांना सुबुद्धी दे  प्रेमामध्ये वृद्धी दे  संकटे आली तरीही  नीती मध्ये शुद्धी दे  रात्री नंतर दिवस देतोस  तसा सर्वाना ज्ञानप्रकाश दे  एकमेकांना जोडणारे  तू प्रेमाचे पाश दे  अपराधी असले तरी मी  तुझीच आहे दाता  तू भक्तवत्सल आहेस म्हणुनी, आत्ता क्षमेचे दान दे  तुझ्या मर्जीत राहण...

Satguru Babaji

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आप तो विरासत में छोड़ गए हो, प्यार की यह बेशुमार दौलत, और खर्चने के लिए दे गए हो, बस चंद सांसों की मोहलत। अब सोचती हुं की, लूटाऊं तो कैसे लूटाऊं ? छुपाऊं तो कैसे छुपाऊं? आप बस मुस्कुरा मुस्करा कर,  देख लेते थे मुझे एक नज़र, और इबादत के उस नशे का,  अब तक छाया है गहरा असर । मै अमीर हो गयी थी..  घर भर गया था, शब्दों, नज्मों और गजलों से । कुछ फरिश्ते अर्श से फरार हो कर, मेरे घर के फर्श पे बैठने लगे हैं । आपके यार थे, मेरे भी यार हो गये हैं ।   आज भी जब हम आपके, दौर की सैर पर निकलते हैं... तो हम ही पोछ देते हैं, इक दुसरे के आपकी याद में बहे आंसू । क्योंकी पता है,  हमारे आंसुओं सें, सबसे ज्यादा तकलीफ, आपको ही होती थी । फिर हम..  आँखो से बहते हुए आंसूओं को, आपकी यादों के मोती बनाकर, आपने ही दिये हुए प्यार के, धागे मी पिरोकर, दिल की तिजोरी में, महफ़ूज रख देते हैं । अपनी अमीरी पे,  आज भी नाज़ कर इतरा लेते हैं ।  क्योंकी, कल तुम पिता हुआ करते थे, आज तुम माता बने हुए हो। बिखर ही जाते हम, पर तुम समेटे हुए हो । पर आप की जरूरत,  कल भी थी,  आज भी है और...

Radheshyam Ji Shraddhanjali

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  येणारा काळ, पिढ्या, श्रोते, प्रेमी  विचारतील मला..  राधेश्यामजी कोण होते?  मी असंख्य आठवणी, कवटाळून सांगेन..  प्रखर होते, कणखर होते.  शब्दांची फुलमाळ होते,  शब्दांची तलवार होते.  जगात होते, पण जगाचे नव्हते  जर कोणाचे होते, तर फक्त सदगुरुचे होते.  ना निंदेचे ना घृणेचे, ना कौतुकाचे चाहते होते  समर्पित होऊन गुरुचरणी, फक्त भक्तीमध्ये वाहते होते.  स्पष्ट होते, सरळ होते.. मुक्तछंदी दरवळ होते  कवी सभेचा जीव होते.. पण बऱ्याचदा राखीव होते.  राधेश्यामजी होते, आहेत आणि राहतील..  कविता, शब्द, गझल त्यांना गुणगुणत राहतील  कारण..  भरून निघणार नाही अशी, मंचावरची जागा राधेश्यामजी आहेत.  माझी कविता उडेल तेव्हा,  योग्य दिशा राधेश्याम जी आहेत.  मेहफिलीतून इतकं अलगद,  उठून जातं का कुणी? अश्रूंबरोबर जी कृतज्ञता वाहतेय, त्या प्रत्येक थेंबात, राधेश्याम जी आहेत.  अमृता  ९ एप्रिल २०२१