मैंने, एक पलड़े में, जिंदगी के सब दुःख रखे, एक में रखी जिंदगी, रिश्तों का दुःख किश्तों का दुःख अपना दुःख पराया दुःख दबा हुआ दुःख उभरा हुआ दुःख भारी से भारी दुःख पर ये पलड़ा हल्का हो रहा है शायद मेरा दुःख कोई और भी ढो रहा है हे, मुर्शद साथ रहकर, तुमने मेरा पलड़ा खाली कर दिया है मेरी जगह रहकर सब सह लिया है और इस खाली पलड़े ने यही है सिखाया ऐ मेरे खुदाया !! मै तुझसे बिछड़ जाऊं इस से बड़ा और कोई दुःख नही ...
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