मुर्शद की गली

मेरे मुर्शद की गली की,

फ़िज़ा ने जिसे छुआ है। 

गया तो बशर था,

लौटा तो फरिश्ता है। 


ऐसा अजब कारोबार है,

मौला तेरे शहर का।  

जिसने ख़ुदी को बेचा,

उसे ख़ुदा मिला है।  


जो मन्नत में माँगते,

तेरी एक नज़र है। 

मुस्कुराता आँसू उनकी,

पलकों से गिरा है।  


जिसने रौशनी देख ली,तेरी दो तलियों में। 

वो कमज़ोर दिया भी,

अँधेरी रात भर जला है। 


तेरी गली का हर शख़्स 

सुनाता ये किस्सा है,

कि तू उनकी पूरी ज़िन्दगी,

और मौला वो तेरा हिस्सा है।

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